टिहरी गढ़वाल के इतिहास धार्मिक स्थल व पर्यटन Tehri garhawl ka Itihas, Dharmiksthal,Paryatan ki jankari hindime

Vijay Sagar Singh Negi
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टिहरी गढ़वाल  का इतिहास

नमस्कार दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम आपको उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के बारे में कुछ जानकारी बता रहे तो ज्यादा जानने के लिए अंतिम तक जरुर पड़े. टिहरी गढ़वाल अपने चारो और से पर्वतों के बीच स्थित बहुत सौन्दर्य जिला  है यहां के विभिन स्थल पर्यटन के लिए बहुत ही अच्छे हैं.
 खास कर इस जिले में उपस्थित  Tehri Dam के लिए. Yah Tehri Garhwal की पहचान के रूप में जाना जाता है,अपने यह के राजा के बारे में तो सुना ही होगा तो चलो जानते है इस खूबसूरत जिले  का इतिहास और यह उपस्थित धार्मिक स्थल व पर्यटन के लिए घूमने वाले स्थान के बारे में.


Tehri garhawl ka itihas, Dharmiksthal,Paryatan ki jankari hindime


टिहरी गढ़वाल का इतिहास  से जुडी जानकरी

आपको बता दू की TEHRI GARHWAL पहले दो अलग अगला थे मतलव दो नामो से इसका नाम पड़ा है,टिहरी और गढ़वाल . क्युकी जो पहले का जो टिहरी  था उसका नाम तेहरी न होकर ‘त्रिहरी’ था, जिसका अर्थ होता है ऐसा स्थान जहाँ पाप दोए जाये वही गढ़वाल अर्थ है  ‘गढ़’ यही एक प्रकार का किला. बात सन्‌ 888 पूर्व की है, जब सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे-छोटे ‘गढ़ों’ यानि रियासतों में विभाजित था. 
जिन रियासतों को अलग अलग राजा जैसे -राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ इन रियसतो के राजा हुआ करते The. इतिहास में टिहरी गढ़वाल का नाम  गणेश प्रयाग बताया गया है. सन्‌ 1803 तक मालवा के राजकुमार कनकपाल के अधीन सारा गढ़वाल क्षेत्र 918 वर्षों तक रहा था.
उन्‍ही सालों में गोरखाओं के हमले उत्तराखंड में बढ़ रहे थे,राजा प्रद्वमुन शाह सन्‌ 1803 में देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की साथ युद्ध करके वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन राजा प्रदुमन साह के पुत्र सुदर्शन शाह को उनके कुछ वफादार लोगों की बदौलत बचा लिया गया था,क्योंकि सुदर्शन शाह उस समय बहुत छोटे थे जो कि युद्ध के लिए कुशल नहीं थे गोरखाओं ने लगभग 12 वर्ष तक यहां राज किया
जब सुदर्शन शाह बड़े हुए तो उन्होंने इस्‍ट इंडिया कम्‍पनी की मदद से गोरखाओं अपने राज्य को पुनः प्राप्त कर दिया किन्तु ईस्ट इंडिया कंपनी ने गढ़वाल का पूरा राज्य सुदर्शन को न देकर देहरादून और पूर्व गढ़वाल,तथा श्रीनगर गढ़वाल कई इलाके कोअपने कब्जे में कर दिया तभी से टिहरी सुदर्शन शाह की सियासत की राजधानी हुई क्योंकि श्रीनगर गढ़वाल को अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया था.
 उसके बाद सुदर्शन शाह के उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्‍द्र शाह ने इस टिहरी रियासत की राजधानी  प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्‍द्र नगर स्‍थापित की इन राजाओं ने अपने नाम पर ही इन स्थानों को बसाया था.  इस राजवंश ने लगभग टिहरी रियासत में 1815 से 1949 तक राज किया आजादी के बाद  श्री देव सुमन व अन्य शहीदों के बलिदान के पश्चात लोगों में राजाओं के शासन से मुक्‍त होने की इच्‍छा बलवती होने लगी.
 तब टिहरी रियासत  के 60 वें राजा जिनका नाम है, मानवेंद्र शाह था  उन्होंने 1949 में भारत के साथ एक हो जाना कबूल कर लिया. क्योंकि वहां की आम जनता अब राजा के शासन में नहीं रहना चाहती थी इसलिए इसे उत्तर प्रदेश के एक जिले के रूप में बना दिया गया यह जिला पहले बहुत बड़ा हुआ करता था उसमें जो आज उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिला है  वह भी इसी का एक भाग यानी की तहसील थी जिसे 24 फरवरी  1960 में अलग कर दिया था । बाद में यहां जिला उत्तर प्रदेश राज्य से 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का एक जिला बना है.

टिहरी गढ़वाल में उपस्थित धार्मिक स्थल

टिहरी गढ़वाल  में आपको बहुत सारे ऐसे धार्मिक स्थल,पर्यटन स्थल घूमने को है,जहां आप घूम कर आनंद मनमोहक दृश्य  देख सकते हैं, धार्मिक स्थलों में बूढ़ा केदार, चंद्रबदनी सुरकंडा श्री देवलसारी महादेव मंदिर, प्रताप नगर विधानसभा में स्थित ओणेश्वर महादेव मंदिर तथा देवप्रयाग में बहुत सारे मंदिर इस जिले की सभ्यता और संस्कृति को दर्शाते हैं.

टिहरी गढ़वाल में उपस्थित पर्यटक स्थल

घूमने योग्य पर्यटन स्थल जोकि प्राकृतिक सौंदर्य से पूर्ण कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग , पावली  बुग्याल, धनोल्टी, कनताल आदि स्थान जहां पर साहसिक खेल होते हैं. इसके अलावा भी यहां बहुत सारे पर्यटन स्थल है,जहां पर आपने सब लोग आप सब लोग घूमने आ सकते हैं वह प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठा सकते हैं.

उम्मीद है आपको टिहरी गढ़वाल के इतिहास धार्मिक स्थल व पर्यटन( Tehri garhawl ka itihas, dharmiksthal,Paryatan) अदि की जानकारी अच्छी लगी हो आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद और ऐसे ही आर्टिकल पढ़ने के लिए आप मेरी वेबसाइट NEGI Uttarkhandi पर विजिट करते रहिये क्योंकि हम ऐसी ही जानकारी के बहुत सारे आर्टिकल लिखते रहते है. 

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