सेम मुखेम नागराजा भाग 2
नमस्कार दोस्तों मैने पिछले ब्लॉग में आपको उत्तराखंड का पांचवा धाम कहे जाने वाले सेम नागराजा की पहली कथा के बारे में बताया था मुझे उम्मीद है की आपको वह कथा रोचक लगी होगी अगर अपने वह भाग नहीं पड़ा तो इस Sem Mukhem पर क्लिक करके आप पहले भाग को पढ़ सकते है ,तो चलिए दोस्तों जानते है सेम नागराजा की अन्य रोचक कथाओ और वह के कुछ अन्य रहस्य के बारे में |दूसरी पौराणिक कथा
तुम मेरे दरसन करने यह आ जाओ.
तब नाग वंशीय राजा वह गए किन्तु गंगू रमोला ने उन्हें अपने राज्य में नहीं आने दिया इससे नाराज होकर नाग वंशीय राजा ने गंगू को श्राप दे दिया,नाग वंशीय राजा के श्राप के कारण गंगू रमोला की सारी गयो ने दूध देना बंद कर दिया और उस जग़ह सरे जल स्रोत सूख गए,जल स्रोत सूखने के कारण वह के लोगो को गंगा नदी में जल लेने आना पड़ता था तथा गंगू रमोला को भी श्राप के कारण कोढ हो गया| जब गंगू रमोला भी गंगा नदी में पानी पीने गए तो उस दौरान पानी पीने के लिए मुख लगाया वैसे ही पानी का रंग खून में बदल गया मैनावती जो कि गंगू रमोला की पत्नी थी.
उन्होंने उन्हें द्वारिका जाने के लिए कहा तथा श्री कृष्ण से क्षमा मांगने के लिए भिक्षुक के भेष में गंगू रमोला द्वारिका गए,वहां जाकर श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि तुम मेरा वहां मंदिर बनाओ तो सब कुछ सही हो जाएगा इस तरह गंगू रमोला ने 6 जगह पर भगवान श्री कृष्ण के मंदिर बनाया जो कि रातों-रात टूट गए उसके बाद गंगू रमोला ने सातवें स्थान पर मंदिर बनाया जिसे आज हम सेम नागराजा कहते हैं तथा इसको प्रगट सेम भी कहते हैं यहां पर भगवान कृष्ण ने गंगू रमोला को ईश्वरीय रूप में दर्शन दिए थे इसलिए इस स्थान को प्रगट सेम भी कहते है|
जिन अन्य ६ जगहों पर मंदिर स्थापित किये वे अर्कटा सेम,वर्ककटा सेम , गुप्त सेम, तालबाला सेम, बरौनी सेम और आरोनी सेम थे
जिन अन्य ६ जगहों पर मंदिर स्थापित किये वे अर्कटा सेम,वर्ककटा सेम , गुप्त सेम, तालबाला सेम, बरौनी सेम और आरोनी सेम थे
तीसरी कथा स्थानीय लोगो के मुताबिक
यह कहानी भी गंगू रमोला से ही जुड़ी हुई है,जो की यहाँ के स्थानीय लोगो में बहुत प्रचलित है यहाँ के स्थानीय लोगो का मानना है जब श्री कृष्ण ने गंगू रमोला से यहां कुछ भूमि देने का आग्रह किया तो गंगू रमोला ने कृष्ण को कहा की अगर तुम ने यह मौजूद राक्षसी हिमा(हरेम्बा) का वध कर दिया तो मैं तुम्हे कुछ भूमि दे दूगा हिमा (हरेम्बा) एक राक्षसी थी जो वह के लोगो को मर दिया करती थी |तब श्री कृष्ण ने राक्षसी हिमा (हरेम्बा) का वध उसी के ही झुले में उसे बैठकर आसमान में उछाल कर उसके शरीर के दो टुकड़े कर दिए जहाँ हिमा (हरेम्बा) का मुख गिरा उस जगह को आज हम मुखेम के नाम से जानते है
बाकि का शरीर जहाँ गिरा वह जगह तलबला सेम के नाम से आज विख्यात है तलबाता सेम से ही मंदिर की पैदल यात्रा प्रारंभ होती है हिमा (हरेम्बा) राक्षसी के वध के बाद गंगू रमोला ने कृष्ण नागराजा का मंदिर यहाँ स्थापित किया व कृष्ण नागराजा ने गंगू को पुत्र वरदान दिया जिसके गंगू के दो पुत्र सिदुआ व विदुआ बहुत वीर और साहसी हुए मंदिर के गर्भगृह में ही गंगू रमोला का परिवार की मूर्तियां भी स्थापित है उसमें साफ साफ देखा जा सकता है कि एक तरफ गंगू रमोला तथा दूसरी तरफ उनकी धर्मपत्नी व बीच में उनके दोनों पुत्रो की प्रतिमा है |
यहां एक गढ़वाली गीत है जोकि गंगू रमोला और कृष्ण के बीच जो वार्ता हुई थी उसके बारे में है तथा इसमें आपको सेम नागराज की पूरी कहानी ज्ञात हो जाएगी
सेम नागरजा में उपस्थित अन्य रहस्य
क्या आप लोग जानते है कि यहां एक ऐसा पत्थर है जो हाथ की सबसे छोटी उंगली से हिल जाता है अगर आप सच्ची श्रद्धा से हिलाने की कोशिश करो तब ही इस पत्थर को ला सकते हो.अगर आप दोनों हाथो से हिलने की कोशिश करोगे तो यह बिल्कुल भी नहीं हिलेगा इसलिए यहां पत्थर अभी तक रहस्य ही है की आखिर यहाँ पत्थर एक उगली से कैसे हिल सकता है , पुराणों में कहा जाता है की अगर किसी को काल सर्प दोष हो तो वहां यहां आकर ठीक हो जाता है ,अब इसमें कितनी सच्ची है ये तो कहा नहीं जा सकता है |
इस पत्थर के पीछे भी एक कथा प्रचलित है जो कि महाभारत के समय की है, मंदिर से 500 मीटर ऊपर की ओर एक पत्थर है कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए रखा था, हुआ कुछ ऐसा कि जब पांडव इस स्थान से गुजर रहे थे तो भीम अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपने रास्ते में आतेे हुए हर पत्थर को उसके वास्तविक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रख दे रहा था.
तब भगवान श्री कृष्ण ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए इस पत्थर को इस स्थान पर रखा जब भीम ने इस पत्थर को हटाने की कोशिश की तो उसके भरपूर शक्ति का प्रयत्न करने पर भी यहां पत्थर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ अंत में थक हार कर भीम ने श्री कृष्ण की आराधना की और उनसे पूछा कि हे प्रभु इस पत्थर को मैं हिला क्यों नहीं पा रहा हूं तो श्री कृष्ण ने भीम को कहा कि तुम मन में सच्ची आस्था से प्रभु का स्मरण करो व अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली से इसे हिलाने का प्रयास करो जैसे ही भीम ने मन में सच्ची आस्था से प्रभु का स्मरण कर अपनी छोटी उंगली से पत्थर को हिलने का प्रयास किया तो वह हिलने लगा बाद में भीम को अपनी गलती का एहसास हुआ और भीम ने श्री कृष्ण से क्षमाा भी मांगी|
आपको बता दें कि कहीं-कहीं कहा जाता है कि मुखेम गांव भी पांडवों ने ही बसया था
इस पत्थर के पीछे भी एक कथा प्रचलित है जो कि महाभारत के समय की है, मंदिर से 500 मीटर ऊपर की ओर एक पत्थर है कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए रखा था, हुआ कुछ ऐसा कि जब पांडव इस स्थान से गुजर रहे थे तो भीम अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपने रास्ते में आतेे हुए हर पत्थर को उसके वास्तविक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रख दे रहा था.
तब भगवान श्री कृष्ण ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए इस पत्थर को इस स्थान पर रखा जब भीम ने इस पत्थर को हटाने की कोशिश की तो उसके भरपूर शक्ति का प्रयत्न करने पर भी यहां पत्थर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ अंत में थक हार कर भीम ने श्री कृष्ण की आराधना की और उनसे पूछा कि हे प्रभु इस पत्थर को मैं हिला क्यों नहीं पा रहा हूं तो श्री कृष्ण ने भीम को कहा कि तुम मन में सच्ची आस्था से प्रभु का स्मरण करो व अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली से इसे हिलाने का प्रयास करो जैसे ही भीम ने मन में सच्ची आस्था से प्रभु का स्मरण कर अपनी छोटी उंगली से पत्थर को हिलने का प्रयास किया तो वह हिलने लगा बाद में भीम को अपनी गलती का एहसास हुआ और भीम ने श्री कृष्ण से क्षमाा भी मांगी|
आपको बता दें कि कहीं-कहीं कहा जाता है कि मुखेम गांव भी पांडवों ने ही बसया था
सतरंजू का सौढ़
मंदिर से करीबन 500 मीटर ऊपर की ओर यह जगह पड़ती है जो कि एक बड़ा सा मैदान है इस मैदान में श्रद्धालुओं द्वारा सेम नागराजा की डोली को लाकर जगारो पर लोग सेम नागरजा Fifth Dham uttarakhandको याद करते है हिमालय की पहाड़ियां दिखाई देती है यहां बड़े बांज, बुरांश के पेड़ हैकहाँ से पहुंचा जा सकता है
सेम नागराजा Sem nagaraja पहुंचने के लिए ऋषिकेश से होकर लंबगाँव से 30km मुखेम गाँव जाना पड़ता है, मुखेम से तलबला सेम तक रोड जाती है, वहां से मंदिर का पैदल मार्ग शुरू होता है जो लगभग 2-4 किलोमीटर है ,पैदल मार्ग में बहुत सारे बांज बुरांश के पेड़ आपकी थकन को काम करते है व मदिर तक पहुंचने का समय भी इन पेड़ पोधो की छांव से आराम से काट जाता है पता भी नहीं चलता है की कब मंदिर तक का मार्ग पूरा हो गया है |ब्लॉग पड़ने के लिए आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद
आपका अपना मित्र
विजय सागर सिंह नेगी (सागरी)
फ्रॉम - टिहरी गढ़वाल