सुरकंडा देवी Surakanda Devi Temple Story in हिंदी

Vijay Sagar Singh Negi
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आज के ब्लॉग में  ऐसे मंदिर के बारे मे कुछ  शब्द लिख रहा हु....... जिसे  कहा जात्ता है  भगवान विष्णु के सुदर्शन चलने पर देवी सती  का  मस्तक जहाँ गिरा था वह मंदिर है सुरकंडा जिसे पुराने समय मे सिरकंधा के नाम से भी जाना जाता था, यह मंदिर टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के जौनसार में स्थित है. 
 Surkanda Devi मंदिर अपनी  आस्था के लिए बहुत विख्यात है मंदिर में पहुंचकर मन को अति  शांति मिलाती है, कनाटल  नामक स्थान के पास स्थित है। यह लगभग 2756 मीटर की ऊंचाई पर है, जो धनोल्टी (8 किमी) और चंबा (22 किमी) के पास के हिल स्टेशनों के करीब है, जो कडूखाल से लगभग 3 किमी की दूरी पर है,  यहां जाने के लिए पैदल मार्ग बना हुआ है, जिससे चढ़कर Surkanda Devi मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.

 
Surakanda Devi mandir Kadukhal Tehri Garhwal
 

सुरकंडा माता मंदिर (Surakanda Devi Temple Story)


Surakanda Devi माता के  भक्तो की इस मंदिर से आस्था जुडी हुई है अकसर भक्त  यहां अपनी मनोकामना  पूर्ण करने आते है इस मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है जिसे चढ़कर भक्त मंदिर के दर्शन करने दूर दूर से आते है मान्यता है यहाँ आये हुए भक्तों की मनोकामना माता के दरसन से पूरी हो जाती है,  नवरात्री  तथा दशहरे में भक्तो  की भीड़ यहाँ साफ़ देखने को मिलती है  यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है


Surkanda मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

केदारखंड  ( जिसे आज हम लोग उत्तराखंड के नाम से जानते है), वा स्कंद पुराण  कहा जात्ता है कि जब देवी सती ने भोलेनाथ से अपने पिता के खिलाफ जाकर विवाह किया तो राजा दक्ष जो कि माता सती के पिता थे उन्होंने जब एक मह यज्ञ  कराया.
 तो शिव भगवान को  आमंत्रित नहीं किया जिससे  रूष्ठ होकर माता सती ने यज़ी की अगनि मेरे अपने प्राण त्याग दिए तब शिव ने उनके पार्थिव शरीर को पूरे ब्रह्मांड में लेके यादव करने लगे ऐसे देकर विष्णु  भगवन ने अपना सुदर्शन चक्र माता सती के पार्थिव शरीर पर चलाया जहाँ जहाँ  माता के शरीर के अंश गिरे वे शक्ति पीठ कहलाए उन्हीं में  से सिर  वाला भाग इस जगह पर गिरा जिसे पौराणिक समय में सिरकांडः  कहा जाता  था  वक़्त के साथ इसका नाम सिरकंधा से सुरकंडा पड़ा  उसके बाद शिव ध्यान मे लीन हो गये व माता सती का मस्तक इस स्थान पर गिरा वो स्थान पर एक भव्य मंदिर स्थापित हुआ जिसे आज हम सुरकंडा माता का मंदिर नाम से जा रहा है.

मंदिर  की आस्था कैसे जुडी है

केदारखंड, वा स्कंद पुराण कहा जाता है की जब स्वर्ग पर असुरो ने कब्ज़ा किया था तो स्वर्ग के पालन हार इंद्र ने यही पर आकर माँ सुरकंडा के समुख तपस्या करके पुनः स्वर्ग पर विजय प्राप्त की उअस वक़्त से आज तक यहां भक्तों का तांता लगा ही रहता है तथा माता के दर्शन करके मान को अलग सी शांति का अहसास मिलता है.
 मंदिर में पहुंचने पर केदारनाथ, बद्रीनाथ,सूर्यकुंड इत्यादि की पहाड़ियों का मनमोहक दिर्श्य अति मन को आराम सा दिलता है यह चढाई चने की थकन तुरन्त उतर उतर जाती है . मान्यता कुछ भी हो पर जब माता के मंदिर पूछते है तो अलग ग्रह की शक्ति महसूस होती है जैसे मनो की स्वर्ग मेड आ गये हो और इतनी हसीन वादियों में मन अति  प्रश्न निया हो जाता है व अलग सा सुकून की अनुभूति होती है.


 चंद पक्तिया सुरकंडा देवी Surakanda Devi Temple के नाम


मंदिर है यहाँ सती का शक्तिपीठों मे से एक है 
गिरा था जहां मस्तक वह स्थान  सुरकंडा   है 
कनाटल  से  है ऊपर सीढ़ियों की चढ़ाई है 
पहुंचकर मिलता है  सुकून 
माता  के दर्शन  से होती है हर मनोकामना पूरी  
 आकर सुरकंडा माता के मंदिर थकान दूर उड़ जाती है भक्तो की आस्था है जो भी आता
 अपनी सारी परेशानी भूल जाता  है
  ऊंची पहाड़ी से दीखते है चारो धाम के पर्वत  
पहुंचकर मंदिर में  स्वर्ग सा   लगता है
दर्शन हो जाये माता के तो जीवन सफल लगता है
आस्था है मंदिर से जुडी यहां पर

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