टिहरी गढ़वाल का इतिहास Tehri Garhwal (TehriDam) History in Hindi

Vijay Sagar Singh Negi
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 आज  आपको इस ब्लॉग के जरिए टिहरी बांध से हुई क्षति या विस्थापन के बारे में कुछ शब्द जो कि विकास के साथ विनाश की कहानी व्यक्त कर रहे हैं.
हम सबको यही दिखता है कि इससे विकास हुआ है किंतु विकास के कारण जो विनाश होता है उसके विषय में कोई भी व्यक्ति बात नहीं करता तथा वक्त के साथ उसे भुला दिया जाता है ऐसी ही कहानी या व्यथा टिहरी बांध बनने के पीछे हैं जो कि भारत का सबसे बड़ा बांध है इस बांध के नीचे पुरानी टिहरी समाई हुई है

Tehri ki Yaad


विकास का दूसरा नाम विनाश होता है इसी का  जीता जागता उदाहरण टिहरी जिले में  बना हुआ टिहरी बांध है जोकि इस लिए प्रसिद्ध है कि यहां भारत के बिजली  आपूर्ति को पूर्ण कर रहा है इस बांध के बनने से बहुत से लोगों को अपने पहाड़ों से विस्थापन होना पड़ा था इसमें हमारी पुरानी टिहरी भी जल विघ्न हो गई तथा कई गांव इसमें जल विघ्न हो गए कई लोगों का यादें जो कि टिहरी से जुड़ी थी वह सारी एक पल में ही पानी के गहराई में समा गई कई लोग अपनी जन्म स्थान से विस्थापित हो गए तथा मैदानी क्षेत्रों में बसेरा कर दिया पुरानी टिहरी का वह  घंटाघर, राजा का महल बाजार तीन नदियों से बना हुआ शहद टिहरी सब कुछ पानी की गहराइयों में इस कदर डूब गया की आज लोगों को पता ही नहीं है कि कि इस पानी की गहराई में कोई शहर घर में कोई सा जिसका नाम टिहरी था वह डूबा हुआ है सन 2004 में जब टिहरी हुआ था.
 तब कई बुजुर्गों की आंखों में अपने पहाड़ से विस्थापित हो जाने का गम साफ जाहिर हो रहा था तीन नदियों का संगम जहां होता था वह टिहरी शहर आज उसका इतिहास का पानी के अंदर समाया हुआ है भले ही उसके स्थान पर न्यू टेहरी नामक दूसरा शहर बस गया हो पर शो जो उस टिहरी शहर में था वह आज न्यू टेहरी में कम ही देखने को मिलता है वह नदी वह गलियां वह चौबारे बहुत ही मनमोहक थे उसके नदियों का बहाव अति प्रशंसनीय था लोग दूरदराज से अपने बच्चों के साथ टिहरी बाजार जाया करते थे और वहां से मनमोहक सामान खरीद कर अपने घर आ जाते थे , टिहरी का वह सिनेमा घर जहां नौजवान  अक्सर सिनेमा देखा करते थे वो यादें यादें ही रह गई


जब किसी बुजुर्ग से पूछा जाता है कि आपको सबसे ज्यादा याद क्या आता है तो वह कहता है ,
 "अपने गांव की गलियांकी व चौबारे और अपनी अपनी बचपन की यादें टिहरी बाजार की रौनक साथ में बैठे वह नदियों का बहना बहुत याद आता है पहाड़ को छोड़ कर आना बड़ा ही दुख देता है और अपने गांव अपने शहर तथा अपनी बचपन की यादों को पानी में समाते हुए देखना आज भी याद आता है"



मैं कुछ चंद पंक्तियों उन लोगों के लिए जो अपने गांव पहाड़ से आज विस्थापित हो गए हैं और मैदानी क्षेत्रों में बस गए हैं

शहर था अनोखा डूब गया पानी की गहराइयों में , 
पहाड़ों से बस गए मैदानी क्षेत्रों में कहां प्यार प्रेम से रहते थे लोग साथ-साथ 
 एक साथ रिश्ते नाते सब हो गए दूर बिछड़ गए वह बचपन के यार 
कोई कहीं  तो कोई कहीं किसी को मिली जमीन देहरादून तो 
किसी को मिला  हरिद्वार  किसी को मिली जमीन ऋषिकेश पर क्या फायदा
 रह के इस मैदानी क्षेत्र में जिसमें ना रहा पहाड़ों जैसा प्यार 
वहां पहाड़ की ठंडी हवा चिड़ियों का चहचहाना 
टिहरी का वहां बाजार ना रहा डूबा ले गया यहां बांध."