गाडा का बुढ़केदार टिहरी गढ़वाल उत्तराखड
नमस्कार दोस्तो उत्तराखंड को देवी देवताओं का स्थान भी कहा जाता है यहाँ बहुत सारे मंदिर है जो अपनी अटूट आस्था के लिए जाने जाते है,उन्हीं में से एक मंदिर जो की धारमंडल पट्टी में पड़ता है, उसी मंदिर के बारे में हम लोग जानेगे व वहाँ के लोगो के कुल देवता के रूप में जाना जाता है यहाँ का नाम गाडा का बुढ़केदार है |
यहाँ के लोग कही भी क्यों न हो एक न एक बार अपने कुल देवता बुद्धकेदार में जरूर उनके दर्शन करने आते है|यहां एक झरना भी उपस्थित है जिसका शीतल जल मन को टेंशन मुक्त करता है|
यहां चीड़ का पूरा जंगल उपस्थित है जिसमें थकान और मन को शांति मिलती है चीड़ के गिरे हुए पत्ते के ऊपर श्रद्धालु आराम करते हैं तथा बच्चे इसमें खेल के अपना मनोरंजन करते हैं इसके अलावा यहां बांज का एक और जंगल में है जहां इसका झरना का पानी बहता है|
जिससे दीवार धाह जा रहा था जब उस व्यक्ति ने उस पत्थर पर हथोड़े से वार किया तो उसमे से खून व दूध जैसा पादर्थ निकला तो उसने उस पत्थर को एक कपडे में लपेटकर उस स्थान पर रख दिया (पत्थर पर जोर से प्रहार करने पर उसका एक टुकड़ा अन्य स्थान पर जा कर गिरा जहा उसका दूसरा मंदिर है) हम अभी बात करते है गाडा का बुढ़केदार की कहा जाता है उस व्यक्ति ने इस पत्थर को उसी स्थान पर रखा जहा पर यहाँ अभी है क्युकी इस जगह कोई भी पानी का स्रोत नहीं था इससे पहले तभी से वह गाडा(पहाड़ से गिरते हुए पानी का बहाव झारना) का उदगम हुआ | कहते है यहाँ जो गाडा उपस्थित है उसका उदगम स्थल इसी पत्थर के निचे से है | पहले जब यहाँ कुछ भी सिक्के चढ़ाये जाते थे तो वो इसी गाडा में पहुंच जाते थे|
यहाँ के लोग कही भी क्यों न हो एक न एक बार अपने कुल देवता बुद्धकेदार में जरूर उनके दर्शन करने आते है|यहां एक झरना भी उपस्थित है जिसका शीतल जल मन को टेंशन मुक्त करता है|
यहां चीड़ का पूरा जंगल उपस्थित है जिसमें थकान और मन को शांति मिलती है चीड़ के गिरे हुए पत्ते के ऊपर श्रद्धालु आराम करते हैं तथा बच्चे इसमें खेल के अपना मनोरंजन करते हैं इसके अलावा यहां बांज का एक और जंगल में है जहां इसका झरना का पानी बहता है|
पौराणिक कथा
कहा जाता है कई वर्षो पहले यहाँ के जो लोग थे वे निति माणा आये थे अब आप लोगो ने तो निति माणा का नाम तो सुना ही होगा जी हाँ वही माणा जो की उत्तराखंड का अंतिम गॉव है मै उसी माणा की बात कर रहा हु| उसी स्थान से यहाँ के लोग यहाँ आये थे जिनका नाम था पटुड़ा नेगी| जब वे यहाँ आये तो यहाँ एक लोहार रहा करता था जिसने उनके लिए इस जगह पर घर बनाया जब वो व्यक्ति घर बना रहा था तो एक पत्थर बार बार दिवार से खिसक जा रहा था|जिससे दीवार धाह जा रहा था जब उस व्यक्ति ने उस पत्थर पर हथोड़े से वार किया तो उसमे से खून व दूध जैसा पादर्थ निकला तो उसने उस पत्थर को एक कपडे में लपेटकर उस स्थान पर रख दिया (पत्थर पर जोर से प्रहार करने पर उसका एक टुकड़ा अन्य स्थान पर जा कर गिरा जहा उसका दूसरा मंदिर है) हम अभी बात करते है गाडा का बुढ़केदार की कहा जाता है उस व्यक्ति ने इस पत्थर को उसी स्थान पर रखा जहा पर यहाँ अभी है क्युकी इस जगह कोई भी पानी का स्रोत नहीं था इससे पहले तभी से वह गाडा(पहाड़ से गिरते हुए पानी का बहाव झारना) का उदगम हुआ | कहते है यहाँ जो गाडा उपस्थित है उसका उदगम स्थल इसी पत्थर के निचे से है | पहले जब यहाँ कुछ भी सिक्के चढ़ाये जाते थे तो वो इसी गाडा में पहुंच जाते थे|
परंपरा
यहाँ एक व्यक्ति पर केदार देवता आता है जो सर्वप्रथम यह उपस्थित कुड़ में स्नान करते है तथा उसके बाद वहांं के लोग केदार देवताओं को अपने कंधो पर मंदिर की ओर ले जाते है|
जब केदार देवता को कंधे पर ले जाया जाता है, तो ऐसी अनुभूति है मानो ईश्वर खुद भगत के साथ चल रहे हो ऐसा कतहि महसूस नहीं होता की कोई कंधे पर हो थकन की अनभूति तक नहीं होती मदिर में पहुंच कर केदार देवता अपनी भगतो की परेशानी का समाधान करते तथा चावल के दानों के द्वारा अपने भक्तों का परेशानियों का समाधान करते हैं|
जब केदार देवता को कंधे पर ले जाया जाता है, तो ऐसी अनुभूति है मानो ईश्वर खुद भगत के साथ चल रहे हो ऐसा कतहि महसूस नहीं होता की कोई कंधे पर हो थकन की अनभूति तक नहीं होती मदिर में पहुंच कर केदार देवता अपनी भगतो की परेशानी का समाधान करते तथा चावल के दानों के द्वारा अपने भक्तों का परेशानियों का समाधान करते हैं|
जय केदार जय उत्तराखंड
ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद
विजय सागर सिंह नेगी ( सागरी)
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From- tehri garhwal