बच्चे और मोबाइल (Bacho ko mobile se hone wale Nukasan )
आज के युग में बच्चों पर जो मोबाइल का भूत सवार हो रखा है उसके बारे में कुछ शब्द लिख रहा हूं और ब्लॉक के अंतिम एक कविता भी लिखी हुई है तो उसे जरूर पढ़ें अच्छा लगे तो शेयर करें आज हम सब देख रहे हैं कि बच्चे पैदा होते ही मां की गोद में कम और फोन के आगोश में ज्यादा खोते जा रहे हैं जैसे ही कोई बच्चा पैदा होता है.
उसे सबसे पहले फोन ही चाहिए ना उससे उसके अलावा कुछ चाहिए ना उसके अलावा कुछ चाहिए उसे आप फोन दे दो बस उसके लिए वही खाना हो गया है नए दौर के बच्चे ऐसे हो गए हैं कि फोन के बिना तो उनकी जिंदगी नहीं कटती है 24 घंटे वहां फोन में लगे रहते हैं सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वहां चौबीसों घंटे उस मोबाइल को चलाने में लगे रहते हैं तथा ना उन्हें खाने का होश रहता है नाही कुछ करने का वह बस लगे हुए हैं.
मोबाइल चलाने में यह आज के युग में बच्चे मां-बाप ,दोस्तों और अपने दादा-दादी के पास कम रहकर फोन के पास ज्यादा रह रहे हैं और वे इस टेक्नोलॉजी में अपने बचपन को होते जा रहे हैं जिस प्रकार अंधे को एक लाठी एक सहारा होता है उसी प्रकार आज यह मोबाइल फोन हर बच्चे का सहारा जैसा बन गया है वहां इसके बिना ना कहीं चाहता है ना कुछ खाता है ना कुछ पीता है ना कुछ पड़ता है वहां बस दिन भर रात भर इसी में झुका रहता है पता नहीं है उसे की कब दिन और रात हो गई पता नहीं उसे वह लगा है मोबाइल में उसे यह भी खबर नहीं खाने का समय हो गया
आधुनिक जीवन में मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव
एक रिसर्च के मुताबिक यह कहा गया है कि बच्चों को मोबाइल देना 1 ग्राम कोकीन देने के बराबर है क्योंकि उन्हें इसकी लत लग जाती है जैसे कि किसी कोकिंग वगैरह को खाने के बाद उसकी लगना जाती है और वहां इस पर लगे रहते हैं इससे उनकी सोचने समझने की क्षमता भी कम होती है तथा वे उनकी आंखों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है बच्चे इसमें एक नशे की तरह घुल जाते हैं.
और उन्हें इसकी आदत सी पड़ जाती है मोबाइल एक नशा ही है जोकि एक बार इस्तेमाल करने के बाद वहां बार-बार से इस्तेमाल करने का मन करता है और इसके बिना बच्चों का काम नहीं चलता आजकल के बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर इसलिए होते जा रहे हैंक्योंकि वह सिर्फ घर में बैठे-बैठे मोबाइल में लगे रहते हैं.
तथा कोई भी एक्स्ट्रा एक्टिविटी जैसे कि दौड़ना भागना दोस्तों के साथ खेलना यह सब नहीं करते हैं इससे जब वह घर में बैठे रहते हैं तो बैठे रहने से उनकी शारीरिक शक्ति कमजोर हो जाती है और वह सिर्फ मोबाइल की ही आदमी रह जाते हैं कहां से आएगी ऐसी हो सकती जब वह बाहर खेलने कूदने और मौज मस्ती नहीं करेंगे तो उनके हड्डियां मजबूत कैसे होगी वे सिर्फ एक रोबोट की भांति रहेंगे जो एक प्रोग्राम की तरह ही चलेगा और जिस के अंदर एक ही प्रोग्राम इनस्टॉल होगा उसी की तरह कार्य करेगा बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है जाता है जो बच्चे जन्म से ही मोबाइल चलाना शुरु करते हैं वह बोलना भी बाद में सीखते हैं क्योंकि उनके लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है.
पहले का दौर और आज के दौर
एक पहले का दौर था जब बच्चे अपने घर में आकर अपने दोस्तों के साथ बाहर खेला करते थे तथा उनके साथ इधर-उधर मस्ती करते फिरते थे उस जमाने में ना कोई यह मोबाइल की माया थी ना किसी चीज का नशा बस थी दोस्तों की यारी और गांव करवाओ घूमना फिरना जब से यहां मोबाइल आया है तब से बच्चों का दोस्तों के साथ घूमना तो दूर की बात है अपने घर की चौखट से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रखा है उन्हें ना कोई दोस्त चाहिए ना कोई साथी उन्हें तो सिर्फ अपना मोबाइल चाहिए उसके अलावा उन्हें कुछ नहीं चाहिए बच्चे इस मोबाइल के मुंह में ऐसे खुलते जा रहे हैं कि उन्हें वहां से निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है उन्हें नामा चाहिए ना पापा ना दोस्त ना भाई होने चाहिए बस एक मोबाइल और कुछ नहीं पहले के दौर में आपने देखा होगा कि बहुत ही कम बच्चों की आंखों में चश्मे लगे हुए होंगे पर आज हर छोटे से छोटे बच्चे की आंखों में चश्मे लगे हुए हैं यह क्यों लगे हुए यह आपको समझ सकते हैं ज्यादा मोबाइल के प्रयोग करने से उनकी आंखों में वह किरणें जाती है जो कि मोबाइल से निकलती और उनकी आंखें कमजोर होती जा रही है पहले बच्चे अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट छुपम छुपाई इत्यादि खेल खेला करते थे जिससे कि उनकी शारीरिक शक्ति सही रहती थी किंतु आज वह सिर्फ एक मोबाइल के अंदर गेम खेल रहे हैं जिससे सिर्फ उनका हाथ चल रहे हैं बाकी शरीर बेजान पड़ा हुआ है
क्या बच्चों का मोबाइल चलाना सही है या गलत
बच्चे यह नहीं सोचते कि क्या कि क्या हो सकता है इस मोबाइल चलाने से और वे मोबाइल चलाते रहते हैं दिन भर और रात भर बच्चों का मोबाइल चलाना एक प्रकार से सही भी है क्योंकि उससे उनको पढ़ाई में जानकारी मिलती है.
किंतु इतना भी नहीं कि वह उसके नशे में डूब जाए बच्चों को सिर्फ मोबाइल तब चलाने चाहिए जब हमें जरूरत हो ना कि फालतू कामों के लिए क्योंकि उनसे उन्हीं का ही नुकसान होता है तथा उनकी शारीरिक शक्ति कमजोर होती जाती हैं क्योंकि अगर वह खेलेंगे नहीं तो उनकी हड्डियां उनकी सारी शक्ति सब खत्म हो जाएगी और वह ज्यादा बीमार होने लगेंगे अगर वह खेलते पूछते रहेंगे तो उनमें सारी शक्ति का विकास होगा और वे अच्छी तरह ग्रो कर सकेंगे मोबाइल में लगे रहना से उनका दिमाग सिर्फ मोबाइल में घुसा रहेगा और उनके अलावा उनका कुछ नहीं होगा.
अभिभावक यहां भी ध्यान रखें यह भी ध्यान रखें कि कहीं उनका बच्चा ज्यादा मोबाइल तो नहीं चला रहा उसे सिर्फ जरूरी कामों के लिए ही मोबाइल दें अगर आप उस पर ध्यान नहीं देंगे तो कल को आपका बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होगा
अभिभावकों को क्या करना चाहिए
1)अपने बच्चों को सिर्फ उस वक्त मोबाइल दे जब आप थोड़ा जरूरी काम कर रहे हो वह भी ज्यादा वक्त के लिए नहीं सिर्फ कुछ मिनट मिनट के लिए
2)उसे ज्यादा से ज्यादा बाहरी खेलों मैं उसकी रूचि बढ़ाएं
3) उसे अपने दोस्तों के साथ होने के लिए भेजे तथा कम से कम मोबाइल में खेलने दे
4) उसे समय दें ताकि वहां अपना समय काटने के लिए किसी टेक्नोलॉजी के भरोसे ना रहे
5) पुराने जमाने में बच्चे अपने दादा दादी के साथ रहते थे तथा उनकी कहानियां सुना करते थे उसी प्रकार आज भी उन्हें अपने बुजुर्गों के साथ ज्यादा रखें ताकि उनका ध्यान इतना ना भटके कि वह किसी और चीज की लत में खो जाए
चंद पंक्तियां बच्चों के मोबाइल मोह के लिए
क्या दौर था वह पहले का जिसमें ना
मोबाइल का शोर था
बच्चे खेलते गांव में दोस्तों के साथ
, घूमते थे इधर उधर गांव मोहल्ला चौक चौबारे
छुट्टियों में जब घर आते थे तो
खेला कराते दोस्तों के साथ
आज खेलते हैं मोबाइल में,
कोई फर्क नहीं पड़ता कहां बैठे हैं
बस जहा मिल जाये मोबाइल वहा बैठे है सभी
पहले खेलते थे दोस्तों के साथ अब
जगा ले ली मोबाइल ने
पहले जाते थे घूमने-फिरने
अब रहें घर में ही बेठे मोबाइल में
मोबाइल ने ले ली जगह पुराने खेलों की
अब तो खेल रहे बच्चे पब्जी है
फर्क नहीं पड़ रहा किसी को कि
कोई घर मे आया मेहमान है
,सब लगे मोबाइल में
सुबह उठते ही मोबाइल चाहिए
बच्चों के हाथ में
पैदा होते ही मोबाइल ले लेता
बच्चो को अपने आगोश में
खाना मिले ना मिले
चाहिए मोबाइल हाथ में
भर रहा बच्चो का पेट इसी मोबाइल की माया में
पढ़ाई के लिए किताब खोले न खोले
पर खेलने के लिए जरूर खोलना मोबाइल है
कैसा लगा रोग बच्चों के महकानो में
लगे है आँखों में चस्मे पर फिर भी लगे मोबाइल में
सोने का होश नही लगे पड़े है मोबाइल में
YouTube पर देखते है gameo के बारे में,
खेलते रहते दिन रात मोबाइल में
होश तक नहीं रहते समय का मोबाइल में
न अध्ययन का होश है न खाने का ख्याल
न चाहे कुछ भी बस चाहे मोबाइल है
हर तरफ ऑनलाइन का शोर है
घर में ही पड़े है मोबाइल में,
क्या दौर था वो जब न ये मोबाइल था,
बच्चे खेलते दोस्तों के साथ क्या मजा का आराम था
क्या दौर था वो,क्या दौर था वो ,
जब न मोबाइल का शोर था
माँ हुई परेशान पर बेटा लगे मोबाइल में ,
माँ बोली बेटा कुछ खाले बेटा लगा मोबाइल में
बेटा बोले तब खा लूँगा क्युकी खेल रह अभी गेम हु
माँ बोले तब खेल लेना पहले खा ले खाना है ,
बेटा बोले बस खाता हू मारना बाकि इक enemy है
क्या दौर आया है इसमें मोबाइल का शोर है
क्या दौर था वो,क्या दौर था वो ,
जब न मोबाइल का शोर था
मेरे या ब्लॉक मोबाइल के खिलाफ नहीं है क्योंकि मोबाइल अगर हमारे जीवन में कुछ चीजें खराब भी कर रहे तो कुछ चीजें सही भी कर रहा है यह सिर्फ यह है कि आप आजकल के बच्चे ज्यादा ही मोबाइल का प्रयोग कर रहे हैं जिससे कि उनकी मानसिक शक्ति पर प्रभाव पड़ रहा है और वह उसके अलावा कुछ नहीं देख रहे हैं इसलिए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मोबाइल के अलावा भी हमारा कुछ और संसार है मोबाइल ही सब कुछ नहीं है इसलिए उसका प्रयोग तब करें जब आपको उसकी जरुरत है फालतू में अपने बच्चों को उसका प्रयोग ना करने दे