चंद्र कूट पर्वत पर सुशोभित है माता चंद्रबदनी का मंदिर

Vijay Sagar Singh Negi
By -


उत्तराखंड के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी माता  मंदिर  Chandrabadani mandir


नमस्कार दोस्तों आ जाऊं आज हम इस ब्लॉग में उत्तराखंड के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर के बारे में जानेंगे  तो शुरू करते हैं कुछ चंद पंक्तियों के साथ-

टिहरी जिले में पड़ता जो मंदिर
चांद जैसा सुशोभित होकर 
चंद्र कूट पर्वत पर सजाता मंदिर

गिरा जहां  बदन माता सती का
 स्थान वह चंद्रबदनी है
रोए जहां  विलाप में शंकर 
स्थान वह चंद्रबदनी है

दर्शन दिए चन्द्र के रूप में भगवान शंकर को 
वो स्थान चंद्रबदनी है
स्थापित किया शंकराचार्य ने मंदिर जहां
 स्थान वह चंद्रबदनी है

मूर्ति नहीं स्थापित यहां पर
 श्री यंत्र की पूजा होती है
लगाते जागर जहा पर 
स्थान वह चंद्रबदनी है

मिलता जहाँ सुकून पहुचकर
 स्थान वह चंद्रबदनी है
चंद्रकूट  पर्वत से भक्तों की रक्षा करती
 माता वह चंद्रबदनी है

मनोकामना पूरी होती जहाँ स्थान
 माता वह चंद्रबदनी है


तो शुरू करते हैं इस ब्लॉग में  माता सती के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानेंगे जो शक्तिपीठों में से एक है उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में उपस्थित चंद्र कूट पर्वत पर स्थित है ,इस उत्तराखंड सिद्ध पीठ  मंदिर का नाम है चंद्रबदनी मंदिर यहां मंदिर एक पर्वत पर इस प्रकार मनमोहक दृश्य में उपस्थित है.   मानो माता पर्वत की चोटी पर बैठकर अपने भक्तों का उपकार कर रही हो यहां जाने पर मन को अत्यधिक शांति मिलती है तथा हर मनोकामना पूर्ण होती है.
 यहां जाने के लिए 2 किलोमीटर पहले ही सड़क खत्म हो जाती है तथा 2 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.रास्ते में ठंडी ठंडी हवा मन को मन मुक्त कर देती है तथा सफर को और आनंदित कर देती है रास्ते में बांज का जनकारी का जंगल श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने में शीतल शीतल हवा प्रदान करता है तथा श्रद्धालुओं को थकान का अहसास तक नहीं होने देता जब श्रद्धालु मंदिर के प्रांगण में पहुंचते हैं तब वहां मन माता के मंदिर के दर्शन तथा चारों तरफ की वातावरण देखकर उनका मन सुशोभित हो जाता है. 
 वह वहां की शोभा देखकर अति प्रसन्न चित्त होकर मंत्र मुक्त हो जाते हैं चारों तरफ  बादल ही बादल और पर्वतों से टकराते हुए ऐसे लगते हैं जैसे कि आसमान में पर्वत की चोटी को चूम लिया हो उत्तराखंड सिद्ध पीठ चंद्रबदनी  मंदिर में पहुंचकर सभी को ऐसी अनुभूति होती है जैसे कि  स्वर्ग में आ गए हो गर्मियों में अगर नीचे का तापमान 30 डिग्री हो तो चंद्रबदनी  मंदिर तक पहुंचे वहां का तापमान 3 से 4 डिग्री तक रह जाता है.


यह भी पढ़ें 

चंद्रबदनी मंदिर की पौराणिक  मान्यता


पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा दक्ष ने जब एक भव्य यज्ञ कराया था तब उन्होंने अपनी पुत्री सती के प्राणनाथ भोले शंकर को नहीं बुलाया इससे आघाता होकर माता सती ने यज्ञ की पवित्र अग्नि में अपने शरीर को अंतादाह कर दिया जब भगवान शंकर को यह पता चला तो  माता सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में इधर-उधर भटकने लगे तथा तांडव करने लगे जिससे देवताओं को डर लगने लगा भगवान शंकर के तांडव के कारण पूरे संसार में भयानक कोहराम मच गया जिससे पूरे संसार में भयंकर प्रलय आ गई.
  इसे देखकर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र माता सती माता सती के ऊपर चला गया तथा जहां-जहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वे सभी शक्तिपीठों के रूप में स्थापित हुई तथा उन्हीं में से एक चंद्र चंद्रबदनी माता का मंदिर जहां माता के बदन का भाग  गिरा था तथा यहां पर भोले शंभू अर्थात शिव भगवान ने सती के लिए विलोप किया था तब माता सती ने  चंद्र के रूप में उन्हें दर्शन देकर उनकी दुख भरी स्थिति को सही किया था इस कारणवश यहां का नाम माता के चंद्र वाले रूप तथा माता के  बदन वाला भाग यहां गिरने से यहां का नाम चंद्र बदनी पड़ा और आज भी  इसी नाम से जाना जाता है आज जो भी जाता है उसके मन में जो भी परेशानी उलझन होती है वह सब सुलझ जाती है पता उसके मन की हर  विविधा दूर हो जाती है.


चंद्रबदनी माता के मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य




कहा जाता है कि चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी मंदिर में कोई भी मूर्ति ना होकर एक श्री यंत्र हैं  जिसकी पूजा होती है श्री यंत्र का मतलब होता है जैसे जब हमारे घरों में पूजा वगैरह होती तो ब्राह्मण एक यंत्र बनाता है जिसे  ही श्री यंत्र यंत्र कहा जाता है उसी प्रकार इस मंदिर में कोई मूर्ति ना होकर एक श्रीयंत्र बना हुआ है जिसकी पूजा की जाती है. चंद्रबदनी मंदिर में माता सती का भजन बदन गिरा था इस कारण एक  शिलालेख पर चुन्नी तथा उसके ऊपर श्री यंत्र लगा हुआ है.
 जिसकी पूजा मंदिर के पुजारी करते हैं ,मंदिर के पुजारी आंखों में पट्टी लगाकर माता सती के  बदन को स्नान करवाते हैं कहा जाता है कि अगर आंख खुली रह कर उन्हें देखने की कोशिश की जाए तो वहां अंधा हो सकता है एक बार किसी पुजारी ने बिना आँख  बंद करें देखने की कोशिश की इससे वह अंधा हो गया इसीलिए अक्सर पुजारी आंखें आंखों पर पट्टी बांधकर माता को स्नान कर आते हैं लोगों की मान्यता के अनुसार यहां माता संध्या के समय दर्शन देती है. 


चंद्रबदनी मंदिर में क्या-क्या होता है



चंद्रबदनी मंदिर में श्रद्धालु नवरात्रों में तथा अप्रैल-मई में ज्यादा आते हैं वैसे तो मंदिर बारहोमास खुला रहता है
चंद्रबदनी मंदिर में  हर समय  मंदिर में जागर होती है अब जागर क्या होती है यह आप सबके मन में होगा जागर का मतलब होता है किसी भी देवी देवता को याद करने के लिए गाया हुआ गीत अर्थात ऐसा भजन जिससे देवी देवताओं को याद किया जाए व उनकी आराधना की जाए उत्तराखंड के पहाड़ों में देवी देवताओं की आराधना व भक्ति करने के लिए जागर लगाई जाती है .दूसरे शब्दों में कहो तो यहां भजन ही होते हैं जोकि देवी देवताओं को याद आते हैं.


चंद्रबदनी मंदिर में कहां से पहुंचा जा सकता है 


अगर कभी आपको चंद्रबदनी मंदिर जाना हो तो आप सभी ऋषिकेश से देवप्रयाग या फिर ऋषिकेश से टिहरी आकर हिंडोलखाल है .15 किलोमीटर जामणीखाल पहले से एक रोड ऊपर की तरफ करती है वहां जाकर आपको 2 किलोमीटर पैदल चलना होगा और आप मंदिर के दर्शन कर सकते हैं पहाड़ की चोटी पर स्थित यह चंद्रबदनी मंदिर  मन को शांति प्रदान करता है आप इसमें एक टूरिज्म के लिए भी आ सकते हैं क्योंकि यहां का तापमान बहुत कम है जो कि गर्मियों में आपको राहत पहुंचा सकता है.

उत्तराखंड के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadani mandir in hindi) के बारे में पढ़कर अच्छा लगा हो ऐसे  ही  मंदिरों के बारे में जानने के लिए आप सभी मेरी ब्लॉग को पढ़ सकते हैं ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद