गोपेश्वर रुद्रनाथ की अदभुत कहानी | Gopeshwar Rudranath Mandir ki kahni
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित प्यार और न्यारा गोपेश्वर में स्थित गोपी नाथ मंदिर इस आर्टिकल में हम जानेगे मंदिर के बड़े में यह जो त्रिशूल है भगवान शिवा का है ,कथा है की शिवा के समय से ही है लेकिन पुरातात्विक शोध कहते हैं की यह नाग राजाओं का विजय स्तंभ है और यह वृक्ष साधारण नहीं इसे कप लता कहते हैं इसमें सर्वदा पुष्पटे हैं |
इसे कामदेव का रूप माना जाता है कामदेव की पत्नी रति की याद दिलाता एक कुंड भी है यहां जहां से गोपेश्वर महादेव की पूजा के लिए नित्य जल लाया जाता है इस स्थान के महत्व में स्कंद पुराण क्या कहता है यह भी जानेंगे साथ ही यह भी की महादेव का नाम गोपेश्वर क्यों पड़ा यह गोपी नाथ क्यों कहलाए तो चलते हैं चौथ केदार भगवान रुद्रनाथ के शीतकालीन प्रवास गोपेश्वर राधा तेरे नाम यात्रा प्रारंभ करते हैं |
गोपेश्वर रुद्रनाथ की अदभुत यात्रा
पहाड़ के किसी कोनी से पीठ पर लड़कर एक दो गैलन लता है पीला देता है यही बहुत है यहां स्नान के बड़े में सोचना भी नहीं चाहिए सूरज की रोशनी नीचे उतरी और हम आगे बढ़ रात की वर्षा में जंगल के पेट धूल गए थे उनकी हरियाली चमक रही थी पानी पीकर धरती मुलायम हो गई संभालते हुए उतारना पद रहा था जंगल के अंधियारे में हूं और ऊपर पहाड़ों पर आकर सूरज खड़ा हो जाए तो उसकी सुनहरी आभा प्राण परित करती है |
स्नान संध्या के जल भी कैसे पीते यहां झरने में स्नान किया सुबह की पूजा की और आगे बढ़ 11 बजे मंडल पहुंच गए अब यहां से गोपेश्वर के लिए 16 किलोमीटर सड़क पर चलना था, सागर पहुंचे तो दोपहर के 2:00 बाज रहे थे बारिश होने लगी सुबह से कुछ खाया भी नहीं था संयुक्त ही था की प्रभु श्री राम के पूर्वज सागर की तपस्थली को पर करते हुए प्रसाद पाया लगभग घंटे भर वर्षा रुकने का इंतजार करता रहा बारिश रुकी तो नहीं लेकिन कम अवश्य हो गई |
शाम ढलना के पहले गोपेश्वर पहुंचाना था इसलिए चल पड़े कपड़े भाव मंदिर के दिव्या दर्शन हुए गोपीनाथ महादेव के समक्ष बैठे तो जैसे ध्यान का आमंत्रण मिल गया प्रभु के अद्भुत विग्रह के समक्ष जैसे कल का दिशा ही मिट्टी भविष्य बच्चा तो केवल वर्तमान में इस स्थान को गोस्थल कहा गया है |
इसे चिन्हित करते हुए स्वयं शिवा पार्वती जी से कहते हैं की वहां तुम्हारे साथ मैं स्वयं निवास करता हूं मैं वहां पाश्र्वेश्वर नाम से जाना जाता हूं वो तीर्थ भक्तों में प्रीति बढ़ाने वाला है वहां मेरा त्रिशूल चिन्ह अचरज से भारत हुआ है | इस त्रिशूल को यदि बलपूर्वक हिलाने का प्रयास किया जाए तो वह तनिक भी नहीं मिलता लेकिन भक्ति के साथ कनिष्ठ उंगली से भी स्पर्श किया जाए तो उसमें बार-बार कंपन होता है |
गोपेश्वर रुद्रनाथ की अदभुत कहानी
हालांकि पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर का निर्माण नवमी वी 11वीं शताब्दी के बीच कचौरी शासको ने कराया था फिर भी यह 1000 वर्षों से अधिक पुराना है मंदिर में मौजूद अभिलेख से कटीयूरी वी नेपाली शासको के इतिहास के संबंध का पता चला है नेपाल के राजा अनेक माल जो 13वीं शताब्दी में यहां के शासन थे उनके कर अभिलेख मंदिर में मौजूद हैं इनमें से तीन की लिपि को पढ़ा जाना शेष है मंदिर परिसर में मौजूद टूटी हुई मूर्तियां यहां स्थापित अन्य छोटे मंदिरों के अस्तित्व को दर्शाती हैं मंदिर का निर्माण नगर शैली में किया गया है वहीं इसकी निर्माण कल को हिमाद्री शैली के रूप में जाना जाता है मंदिर परिसर में मां दुर्गा गणेश एवं हनुमान जी के मंदिर हैं |
इसका शिखर केदारनाथ मंदिर जैसा दिखाई देता है लेकिन इसकी ऊंचाई केदारखंड के सभी मंदिरों से बहुत अधिक है मुख्य द्वारा की ऊंचाई भी बहुत है मंदिर का गर्भ ग्रह तकरीबन 30 वर्ग फिट का बताया जाता है मंदिर की परिक्रमा की फिर पुजारी जी से महात्मा जानना शुरू किया उन्होंने भी अर्थ से प्रारंभ किया जब महादेव के इनकार करने के बाद भी सती पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पहुंची तब उन्होंने वहां भोलेनाथ के अपमान को महसूस किया इसके बाद उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी क्रोधित शिवा ने अपनी जाता से एक बाल तोड़कर भूमि पर पटका तो वीरभद्र प्रकट हुए गानों के साथ वीरभद्र यज्ञ स्थल पर गए |
सब का ध्वंस कर दिया कुंड में दाल दिया और सती का अमृत शरीर लेकर भ्रमण करने लगे जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए तब शिवा को यहां आकर शांति मिली और यही समाधि ले ली सुदर्शन चक्र अंग भांग कर दिए थे सत्य उनकी बात अब पूछ ले राहत बड़े परेशान हो गए भगवान तब उन्होंने चलते चलते इस स्थान में पहुंचे |
भगवान यहां उनको शांति मिली भगवान शंकर जी और यही उन्होंने बाद में कामदेव के व्यवधान से उनकी समाधि टूटी तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म किया फिर कामदेव की पत्नी रति ने एक कुंड के निकट शिवा की कठिन तपस्या की शिवा प्रकट हुए और वरदान दिया की कामदेव प्रद्युम्न के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र बनकर जन्म लेंगे और वहीं तुम्हारी उनसे भेंट होगी |
इसीलिए यहां भोलेनाथ का नाम रतेश्वर भी पड़ा जहां रति ने तप किया उसे कुंड का नाम रतीकुंड पड़ा जिसे वेतारानी कुंड भी कहा जाता है माना जाता है की इस कुंड में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप करते हैं और वह शिवलोक को जाता है तो नहीं भगवान से प्रार्थना ही समाप्त हो जाएगी अगर आप कामदेव नहीं देते हैं |
भगवान शंकर जी ने कामदेव को मछली के रूप में जल जाए यहां पर आधा किलोमीटर की दूरी चलते हैं की मंदिर के ठीक बगल में एक वृक्ष है जो हर रितु में एक जैसा सदा पुष्पों से भारत राहत है पुजारी जी ने भी बताया की मंदिर परिसर में एक ही पेड़ है जिसे कामदेव का रूप माना जाता है मनोकामनाओं को पूरा करने वाला वृक्ष कल्पलता इसमें कभी पतझड़ नहीं आता |
इसका दर्शन धनिया करता है हर महीने में हर सीजन में मंदिर के बाहर खड़ा त्रिशूल आश्चर्य से भर देता है की आखिर यह कैसे इतने वर्षों से अखंड बना हुआ है पौराणिक कल से लेकर अब तक इस तीर्थ का प्रतीक चिन्ह बना हुआ है विजय प्राप्त की उन्होंने अपना विजय कौन झूठ है ऐसा भी कहते हैं जब भगवान राम जी का अवतार हुए परशुराम जी का अवतार पूरा हो गया |
तो परशुराम जी को परशा भगवान शंकर जी ने दिया था उन्होंने शंकर जी को यह प्रसाद विधायक दिया था तो शंकर जी ने अपने त्रिशूल में ही हूं खर्चा कर दिया था इसी बात से उसको परशुराम का फरसा शिवाजी का शिवा ऐसा भी उपाधि है इस मंदिर और शिवलिंग का नाम गोपेश्वर क्यों पड़ा ये जान बिना इस मंदिर का दर्शन पूरा नहीं होता |
अब मैं क्या बताऊं पुजारी जी से ही सुन लीजिए फिर यही से भगवान शंकर जी जो है वृंदावन में गोपियों की रासलीला देखने के लिए अनुमति नहीं थी,मैं भी अंदर गोपी के साथ चले जाओगे आगे से भगवान शंकर जी प्रधान गोपी के रूप में नाचने लगे तो भगवान कृष्णा की घबरा के भाई कौन है आज उनको पता लगाइए भगवान शंकर है फिर भगवान वो कृष्णा जी ने कहा भगवान शंकर उसे नाम को लेकर आए मंदिर परिसर में बनी धर्मशाला बहुत सुंदर है |
प्राचीन निर्माण को नए तरीके से तैयार किया मंजिल में भगवान रुद्रनाथ की गाड़ी है जहां उनका शीतकालीन प्रवास राहत है पर उपस्थित को यही से प्रणाम किया और मंदिर की धर्मशाला में बना एकादशी का प्रसाद पाया आलू और सेंधा नमक प्रसाद जो है |
गोपेश्वर रुद्रनाथ की कहाँ से पहुंचे
गोपेश्वर तक कैसे पहुंचे और कहां ठहरे गोपेश्वर उत्तराखंड के चमोली जिले का नजदीकी जनपद है आप अगर हरिद्वार से यात्रा प्रारंभ कर रहे हैं तो ऋषिकेश देवप्रयाग श्रीनगर रुद्रप्रयाग करणप्रयाग नंदप्रयाग होते हुए गोपेश्वर पहुंच सकते हैं गोपेश्वर बड़ा कस्बा है इसलिए यहां रुकने खाने के पर्याप्त स्थान है छोटे बड़े होटल हैं नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है |
नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून निजी या शेयरिंग टैक्सी चुन सकते हैं यात्री बसो पर भी स्वर हो सकते हैं इस आर्टिकल में यही तक अगले भाग में चलेंगे पांचवें केदार कल्पेश्वर जहां है भगवान भोलेनाथ की जताए प्राकृतिक सौंदर्य के तो खाने तब तक के लिए हमारा यह सनातन धन जान तक पहुंचे तो परिचितों और मित्रों के साथ सजा करें हमने अपने हिस का कम किया आपका कम आपको करना है हमारी भक्ति को अपनी शक्ति दें जय बाबा गोपीनाथ जय हो बाबा रुद्रनाथ नर्मदे हर